गणेश अथर्वशीर्ष पाठ

गणेश अथर्वशीर्ष भगवान गणेश को समर्पित एक स्तोत्र है, जिन्हें हिंदू देवताओं में प्रमुख देवता माना जाता है। स्तोत्र बताता है कि कैसे भगवान गणेश सबसे प्रमुख ब्राह्मण, सर्वोच्च इकाई और सभी जीवित और निर्जीव चीजों का सार एक साथ हैं। मान्यता है कि अथर्वशीर्ष स्त्रोत पाठ करने से व्यक्ति के दुखों का अंत हो जाता है।

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Last updated Sat, 29-Jan-2022 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • गणपति अथर्वशीर्ष का कम से कम एक पाठ नियमित करने से शरीर की आंतरिक शुद्धि होती है।
  • इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ से मानसिक शांति और मानसिक मजबूती मिलती है।
  • इससे दिमाग स्थिर रहते हुए सटीक निर्णय लेने के काबिल बनता है।
  • इसके नियमित पाठ से शरीर के सारे विषैले तत्व बाहर आ जाते हैं।
  • शरीर में एक विशेष तरह की कांति पैदा होती है।
  • जीवन में स्थिरता आती है।
  • कार्यों में बेवजह आने वाली रूकावटें दूर होती हैं।

पूजाविधि के चरण
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स्थापन
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  • सर्व प्रथम चौकी लगाकर उसके ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर मध्य में गणपति की मूर्ति या फोटो रखकर गणपति जी को कुमकुम ,हल्दी,चन्दन , अबीर, गुलाल,अक्षत लगाकर फूलो का हार चढ़ाये। दायी बाजु घी का लेटी बाती का दीपक जलाये। और बायीं बाजु धूपबत्ती और सामने नैवेद्य रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ गणपति अथर्वशीर्ष पाठ करिष्ये।
  • ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।
    त्वमेव केवलं कर्त्तासि। त्वमेव केवलं धर्तासि।
    त्वमेव केवलं हर्तासि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
    त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।
    अव त्वं मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं।
    अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चात्तात्। अवं पुरस्तात्।
    अव चोत्तरातात्। अव दक्षिणात्तात्। अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
    सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात्। त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:।
    त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
    त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।
    सर्वं जगदि‍दं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
    सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
    त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारि वाक्पदानी।
    त्वं गुणत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:।
    त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
    त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
    त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं।
    वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरोम्।
    गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्।
    अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितम्।
    ।।१।।तारेण रुद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
    गकार: पूर्व रूपम्। अकारो मध्यमरूपं।
    अनुस्वारश्चान्त्य रूपम्। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
    नाद: संधानम्। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।
    गणक ऋषि: निचृद्गायत्री छंद:। श्रीमहाग‍णपतिर्देवता।
    ॐ गं। गणपतये नम:।
    एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्।
    एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
    अभयं वरदं हस्तैर्ब्रिभ्राणं मूषक ध्वजम्।
    रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
    रक्त गंधानुलिप्तागं रक्तपुष्पै सुपूजितम्।
    भक्तानुकंपिन देवं जगत्कारणमच्युतम्।
    आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम्।
    एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।
    नमो व्रातपतये नमो गणपतये नम: प्रथमपतये।
    नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय विघ्नविनाशिने शिव सुताय।
    श्री वरदमूर्तये नमो नम:।
    एतदथर्वशिरो योऽधीते सब्रह्मभूयाय कल्पते।
    स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते स सर्वत: सुख मेधते।
    स पञ्चमहापात कोपपात कात् प्रमुच्यते।
    सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।
    प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
    सायं प्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
    धर्मार्थ काममोक्षं च विदंति।
    इदमथर्वशीर्षम शिष्याय न देयम्।
    यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
    सहस्त्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।
    अनेन गणपतिमभिषिं‍चति स वाग्मी भ‍वति।
    चतुर्थ्यामनश्रन्न जपति स विद्यावान् भवति।
    इत्यथर्वणवाक्यं। ब्रह्माद्याचरणं विद्यात् । न विभेती कदाचनेति।
    यो दूर्वा कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
    यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति। स मेधावान् भवति।
    यो मोदक सहस्त्रेण यजति।
    स वांञ्छित फलमवाप्नोति।
    य: साज्य समिभ्दिर्यजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।
    अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।
    सूर्यगृहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति।
    महाविघ्नात्प्रमुच्यते। महापापात् प्रमुच्यते। महादोषात्प्रमुच्यते।
    स सर्व विद्भवति स सर्व विद्भवति। य एवं वेद ।।
    ।। ॐ भद्रं कर्णेभिति शांतिः ।।

    ।। इति गणेश अथर्वशीर्ष स्तोत्र।।
  • गुड़ और घी
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • गणपति जी की मूर्ति या फोटो
  • कुमकुम ( रोली )
  • चावल
  • अबीर
  • गुलाल
  • दीपक - रुई - कपूर
  • धुप - अगरबत्ती -१ पैकेट
वर्णन
देवगणों में प्रथम पूज्य श्री गणेश अपने भक्तों के संकट हरते हैं।  गणपति जी को प्रसन्न करने के लिए उनका पूजन, स्तोत्र पाठ और मंत्रोच्चारण करना चाहिए। इसके साथ ही भगवान गणेश का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करने से भी फलदायक लाभ मिलता है।
गणेशजी की मंत्रों जाप व्यक्ति को सर्व सिद्धि प्राप्त कराता है। हालांकि, इसमें कुछ ध्यान रखने योग्य बातें भी हैं। गणपति जी का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठसंपूर्ण सामग्री के साथ करना चाहिए। इसमें सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य गणपति जी को जरूर अर्पण करें। साथ ही उन्हें उनकी अतिप्रिय दूर्वा जरूर चढ़ाएं। लाल पुष्पों से इनका पूजन करें। इससे घर और जीवन मंगलमय हो जाता है। ध्यान रहे कि इनका उच्चारण एकदम सही होना अनिवार्य है।